श्री डिग्गी कल्याण जी का मेला, पदयात्रा और मंदिर में उमड़ा जनसैलाब





श्री कल्याण जी का मंदिर राजस्थान के मालपुरा स्थित डिग्गी कस्बे में है। डिग्गी कल्याण जी का मेला हर साल अगस्त में आयोजित होता है। इस दौरान जगह-जगह से पदयात्राएं आती है और दर्शनार्थी कल्याण धणी के दर्शन कर पुण्य कमाते है।  

कल्याण धणी का मंदिर काफी प्राचीन है और इस मंदिर को लेकर पौराणिक कथा भी प्रचलित है।  इसका पुर्ननिर्माण मेवाड़ के तत्कालीन राणा संग्राम सिंह के शासन काल में संवत् 1584 यानि वर्ष 1527 में हुआ था। उसके बाद भी यहां निर्माण कार्य हुए है। आज यह मंदिर घनी आबादी के बीच स्थित है। 

डिग्गी कल्याण जी कथा

श्री कल्याण जी मंदिर को लेकर पौराणिक कथा प्रचलित है। इसके अनुसार एक बार इंद्र की सभा में अप्सराएं नृत्य कर रही थी। इसी दौरान किसी बात पर अप्सरा को हंसी आ गई और इंद्र का ध्यान भंग हो गया। क्रोध में आकर उन्होंने अप्सरा को 12 साल तक मृत्यु लोक में रहने का श्राप दिया। 

शापित उर्वशी मृत्युलोक में सप्त ऋषियों के आश्रम में रहने लगी। सेवा से प्रसन्न होकर सप्त ऋषियों ने उससे वरदान मांगने को कहा। उर्वशी ने वापस इंद्रलोक जाने की इच्छा प्रकट की। 

सप्त ऋषियों ने कहा कि ढूंढाड़ प्रदेश में राजा डिग्व राज्य करते हैं। तुम उनके राज्य में निवास करो वहां तुम्हे मुक्ति की राह मिल जाएगी। 

इसके बाद उर्वशी डिग्व राजा के क्षेत्र में चन्द्रगिरि पहाड़ पर रहने लगी। वर्तमान में यह स्थान मालपुरा में चांदसेन नाम से प्रसिद्ध है। उस वक्त यहां पहाड़ और सुंदर बगीचे होते थे। उर्वशी रात में घोड़ी का रूप धारण कर अपनी भूख मिटाती थी। इससे बाग को उजड़ने लगा तो परेशान राजा ने इस घोड़ी को देखते ही पकड़ने के आदेश दिए। एक दिन राजा ने उसे पकड़ लिया। घोडी अपने असली रूप में आ गई। राजा उर्वशी को देखकर मुग्ध हो गए और उन्होंने महल में रहने का निमंत्रण दिया। 

उर्वशी ने कहा कि श्राप काल समाप्त होने पर उसे इन्द्र लेने आएंगे और डिग्व यदि इन्द्र को पराजित कर देंगे तो वह सदा के लिए महल में रहेगी और ऐसा नहीं हुआ तो वह राजा को श्राप देगी। उर्वशी का श्राप काल समाप्त होते ही इन्द्र लेने आ गए और उन्होंने राजा से युद्ध किया और इसमें डिग्व हार गए। उर्वशी ने पराजित राजा को कोढ़ी होने का श्राप दिया। 

डिग्गी में हुआ था इंद्र और डिग्वी में युद्ध!

भगवान विष्णु ने इस श्राप से मुक्ति की राह बताई। उन्होंने कहा कि कुछ समय बाद समुद्र में उन्हें मेरी यानि की विष्णु की मूर्ति मिलेगी, इसके दर्शन से श्राप से मुक्ति मिल जाएगी। राजा समुद्र के किनारे रहने लगे। एक दिन उनकी नजर वहां एक मूर्ति पर पड़ी और वह श्राप मुक्त हो गए। तभी वहां एक और दुखी व्यक्ति आ गया। उसने भी मूर्ति को देखा तो संकट दूर हो गया। अब दोनों के बीच इस मूर्ति के उत्तराधिकारी को लेकर विवाद हो गया। तभी आकाशवाणी होती है कि जो व्यक्ति रथ के अश्वों के स्थान पर स्वयं जुतकर प्रतिमा को ले जा सकेगा, वही उत्तराधिकारी होगा। दूसरा व्यक्ति इसमें असफल रहा और राजा इसे अपने राज्य में लेकर आ गए। मूर्ति की स्थापना उस स्थान पर की जहां उनका इंद्र के साथ युद्ध हुआ था। यही स्थान आज का डिग्गीपुरी है और कल्याण जी के मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। 

वैसे तो मन्दिर में रोजाना ही भक्तों की भीड़ रहती है लेकिन, प्रत्येक माह की पूर्णिमा को यहां मेला लगता है। इसके साथ ही वैशाख पूर्णिमा, श्रावण एकादषी एवं अमावस्या और जल झूलनी एकादशी को बड़ा मेला आयोजित होता है।

डिग्गी पदयात्रा

राजस्थान में हर साल सावन भादवा में कई पदयात्राएं आयोजित होती है। इनमें डिग्गी कल्याण जी की लक्खी पदयात्रा महत्वपूर्ण है। डिग्गी पदयात्रा में जयपुर, अलवर, टोंक, कोटा, बूंदी, सीकर, भरतपुर, सवाई माधोपुर, दौसा समेत कई जिलों से श्रद्धालु शामिल होते है। दो साल से यह पदयात्रा कोराना महामारी की वजह से आयोजित नहीं हो सकी। इस साल यानि 2022 में डिग्गी की पदयात्रा जयपुर से 3 अगस्त को रवाना हुई। डिग्गी कल्याणजी का मेला 7 अगस्त को संपन्न होगा। 

डिग्गी  कल्याणजी मेला 2023

श्री डिग्गी कल्याणजी महाराज का लक्खी मेला हर साल श्रावण शुक्ल षष्ठी पर पर शुरू होता है। जो एकादशी तक चलता है। षष्ठी से लेकर अष्ठमी तक मुख्य मेला रहता है। श्रावण शुक्ल की एकादशी पर श्रीकल्याणजी महाराज के ध्वज अर्पित करने के साथ ही मेले का समापन होता है। इस दौरान यहां कई पदयात्राएं पहुंचती है। 

कल्याण धणी के भजनों की गूंज 

पदयात्रा में शामिल पदयात्री म्हारा डिग्गी पुरी का राजा, बाजै छ नौबत बाजा जैसे कल्याण जी के भजनों पर थिरकते मंदिर पहुंचते है। इस दौरान जगह—जगह भंडारे और प्रसादी वितरण होता है। 

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